परसवाड़ा हाटबाजार: सब्जियों से पहले कीचड़ बिक रहा है!
जब विकास फिसलन में बदल जाए – ग्रामीण बाजार की शर्मनाक तस्वीर
बालाघाट-परसवाड़ा हाटबाजार इस समय ग्रामीण विकास की उस हकीकत को उजागर कर रहा है, जो फाइलों में तो जगमगाती है, पर ज़मीन पर कीचड़ में सनी होती है।
हर बुधवार लगने वाला यह बाजार अब कारोबार का नहीं, कीचड़ पर्व का केंद्र बन गया है। न सड़कें हैं, न छत, न सुविधाएं – और जो है, वो है बेहिसाब वसूली और बेहिसाब कीचड़।
💰 सुविधा नहीं, सिर्फ वसूली है
यहाँ दुकानदारों से ₹80 से ₹200 तक वसूला जाता है। बदले में न तो शेड मिलता है, न फर्श, और न ही साफ-सफाई। ठेकेदार जेब भरते हैं और प्रशासन ‘आँखों में घी और कानों में तेल डालकर’ बैठा है।
🌧️ बारिश आई, व्यवस्था बह गई
बारिश का पहला छींटा पड़ा नहीं कि हाटबाजार दलदल में तब्दील हो गया। ग्राहक आए थे टमाटर खरीदने, मगर खुद आलू बनकर फिसलते नजर आए।
"लगता है ‘जल निकासी’ को जलसमाधि मिल गई है।"
🗣️ बाजार से कुछ आवाजें
- 👩🌾 "हम यहाँ कमाई नहीं, कीचड़ में कसरत करने आते हैं।"
- 👨 "यहाँ सब्जी नहीं, जूते धोने की मजबूरी बिकती है।"
- 👴 "ठेकेदार बदले, हालत नहीं – ये ‘विकास की विदाई’ है।"
🙈 प्रशासन – न तीन में, न तेरह में
ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, और जिला प्रशासन – तीनों जिम्मेदार हैं, पर सभी जिम्मेदारी से कोसों दूर।
📌 क्या होगा समाधान?
- स्थायी शेड और पक्की सड़कों की व्यवस्था
- जल निकासी और नियमित सफाई
- पारदर्शी शुल्क और ग्रामीण सुविधा पर खर्च

