"परमिट था... सुरक्षा नहीं! बिजली विभाग की लापरवाही ने ली जान"
सीहोर जिले के भेरूंदा नगर में बिजली विभाग की घोर लापरवाही ने एक युवा की जान ले ली। देवमाता स्कूल के पास स्थित पावर हाउस से परमिट लेकर खंभे पर तार जोड़ने चढ़े रुद्रप्रताप परते (निवासी गिलोर) की करंट लगने से मौके पर ही मौत हो गई। बताया जा रहा है कि कार्य के दौरान लाइन को ऑफ करने की जिम्मेदारी निभाने में विभाग पूरी तरह विफल रहा।
घटना के बाद परिजनों और ग्रामीणों ने शव को सीधे बिजली ऑफिस में रखकर हंगामा किया। गुस्साए लोगों ने पावर हाउस ऑपरेटर को तत्काल निलंबित करने की मांग की और विभागीय अधिकारियों पर कार्रवाई की बात कही।
सूचना मिलते ही भेरूंदा थाना प्रभारी मौके पर पहुंचे और परिजनों को समझाइश देकर 'यथासंभव कार्रवाई' का आश्वासन दिया। भारी हंगामे के बाद परिजन अंततः शव को अंतिम संस्कार के लिए ले गए।
सवालों के घेरे में विभाग
सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि परमिट जारी हुआ था, तो कार्य स्थल पर लाइन बंद क्यों नहीं की गई? ठेकेदारों द्वारा काम कराए जाने की प्रथा तो वर्षों से चल रही है, लेकिन क्या सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराना विभाग की जिम्मेदारी नहीं बनती? यह हादसा सिस्टम की लचर निगरानी और कर्मचारी सुरक्षा की उपेक्षा का नतीजा है।
नहीं पहली घटना...
यह कोई पहली बार नहीं हुआ है। प्रदेश में हर साल दर्जनों लाइनमैन और विद्युत कर्मचारी ऐसी ही घटनाओं में जान गंवा बैठते हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी कुछ दिनों की फाइलिंग और दिखावटी जांच के बाद फिर उसी लापरवाही के दलदल में लौट जाते हैं।
‘यथासंभव कार्यवाही’ बन चुकी है रटी-रटाई पंक्ति
हर मौत के बाद थाना प्रभारी और विभागीय अधिकारी यही कहते हैं – "यथासंभव कार्यवाही करेंगे"। लेकिन ना किसी को सस्पेंड किया जाता है, न चार्जशीट, और ना ही किसी पर ठोस कानूनी कार्यवाही होती है।
कटाक्ष: खंभे पर चढ़े थे सपने, नीचे गिर गया सिस्टम
यह एक व्यक्ति की नहीं, पूरे सिस्टम की हार है। एक परमिट में लिखा गया था – 'काम की अनुमति', लेकिन न सुरक्षा, न निगरानी, न हेलमेट, न रबर ग्लव्स। व्यवस्था ने फिर एक गरीब को मौत के हवाले कर दिया।


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