“जंगल बचाओ या कब्जा बचाओ? आंदोलन की आड़ में नेताओं का ‘जमीन प्रेम’”
✍ जमीनी रिपोर्ट, सीहोर से
सीहोर का जंगल इन दिनों हरियाली से नहीं, दलालीपन से घिरा है।
जहां एक ओर सरकार ने लाड़कुई और इछावर वन क्षेत्र में हजारों एकड़ जमीन अतिक्रमण मुक्त कराकर सरदार वल्लभभाई पटेल अभ्यारण्य बनाने की ठानी है, वहीं दूसरी ओर कुछ नेताजी लोगों के पेट में मरोड़ उठने लगे हैं। कारण?
क्योंकि अब वो जंगल वापिस मांगा जा रहा है, जिसे इन्होंने बपौती समझ कर जोत डाला था!
🌳 धरती के बेटों को बरगलाने वाले ‘जंगल के राजा’
ऊनील बारेला(यह नाम व्यंगात्मक रखा गया है असली नाम आप खुद समझ जाना) नाम तो सुना ही होगा।
जो कहने को आदिवासियों का मसीहा हैं, मगर असल में ‘जंगल के जमीनदाता’ बन बैठे हैं।
कब्जा किया उन्होंने…
जमीन हड़पी उन्होंने…
शिवराज के राज में मलाई खाई उन्होंने…
और अब आंदोलन करवाएंगे ये भोले-भाले आदिवासियों से? सूत्रों की माने तो इनके परिवार ने इटावा, खजूरी, पानी डूंगला, पिपलानी जैसे गाँवों के जंगलों में करीब 1000 से 1500 एकड़ भूमि पर कब्जा कर रखा है।यह साहब पंचायत विभाग में सरकारी मुलाजिम भी है और इनको पंचायत का मुँह देखे ज़माना हो गया।
🌿 नेताओं का ‘हरियाली प्रेम’ तभी जागा जब कब्जा हिलने लगा
अब जब सरकार ने तय किया कि जंगल से अतिक्रमण हटेगा,
तो जिनका धंधा 'हरियाली' में था, वो बेचैन हो उठे।
अब आदिवासियों को कहा जा रहा है –
"तुम्हारे हक छीने जा रहे हैं, उठो! आंदोलन करो!"
📅 28 जून का बुलावा – असल में ‘कब्जा बचाओ महासम्मेलन’?
नेता लोग 28 जून को सीहोर में आदिवासियों को इकट्ठा करने का ऐलान कर रहे हैं।
नाम दिया गया है – जंगल बचाओ आंदोलन।
मगर मकसद है – अपनी जमीने बचाओ जलसा!
🧠 आदिवासियों से सवाल — "नेता की चाल में फँसोगे या जंगल बचाओगे?"
आदिवासी भाइयों और बहनों,
आपका इतिहास संघर्षों से भरा है — जंगल से रिश्ता रोटी जैसा है।
पर आज कुछ नेताओं ने आपको झूठी कहानी सुनाई है कि सरकार आपकी जमीन छीन रही है।
🌎 जंगल रहेगा तो कल रहेगा
सरकार अब जंगल को बचाना चाहती है – वन्य जीवों के लिए, जलवायु के लिए, आपके बच्चों के भविष्य के लिए।
पर जिनका पेट ‘हरियाली’ से पलता था,
अब वो ‘हरियाली के रक्षक’ बनकर ‘धंधे की रक्षा’ कर रहे हैं।




